हास्य मेरे लिए पीड़ा की अभिव्यक्ति है...मैं जब कभी बहुत उदास होता हूँ तब मेरे अंतर मन में हास्य में के भूरुण पनप रहे होते हैं...और जब जब मेरा हास्य अपनी पराकास्ठा पर होता है तब मैं भावनाओं के असीम सागर में गोते लगा रहा होता हूँ ....अपने बारे में बस यही कह सकता हूँ...."कहीं रो लिया कहीं गा लिया कहीं बेवजह यूँही हँस दिया,
ये मिजाज़ कितना अजीब है मैं जुदा हूँ अपने ही आपसे "
वो इस तरह से मन को उजालों से भर गया जैसे कोई चिराग़ अंधेरों में धर गया भूला कोई किसी को फ़क़त ख़्वाब समझ कर कोई किसी के वास्ते हद से गुज़र गया जाने क्या सोच कर मिरी आँखें उमड़ पड़ीं इक बोझ सा था दिल पे अचानक उतर गया