Wednesday, July 15, 2009

जम कि बरसूँ मैं अपने जिस्म को बादल कर दूँ
आज खु़द को मैं तेरे प्यार में पागल कर दूँ
दूर ही दूर रहे तुझ से बलाएँ सारी
मैं ख़ुद को आज तेरी आँख का काजल कर दूँ
तू भटकता है कहाँ खुशबुओं कि चाहत में
आ मेरे पास तुझे छु के मैं संदल कर दूँ..
जिसका जैसा मन होता है
वैसा ही दरपन होता है
छोटे से दिल में भी यारो
बहुत बडा आँगन होता है
सुख दुःख में जो साथ निभाए
सच्चा वो बंधन होता है
जब भी वो मिलता है हमसे
पतझर भी सावन होता है
कुर्सी का कमाल,राजनिती के दलाल
डाल रौशनी पे जाल मोटा माल चरते रहे..
झूठे मूठे वायदों की मीठी मीठी गोलियों से
जनता कि धन से तिजोरी भरते रहे
एक ओर इन कि गोदामों में अनाज भरे
दूजी ओर भूखे प्यासे लोग मरते रहे
खु़द के विकास को ही देश का विकास मान
नेता गन अपना विकास करते रहे...