Tuesday, September 8, 2009

शाम ढली है चाँद अभी निकला निकला
छत पर मैं अम्बर पे वो तनहा तनहा

छोड़ लड़कपन होश अभी संभला संभला
मौसम का हर रंग लगे बहका बहका

कभी भटकता रहता हूँ सहरा सहरा
कभी रहूँ मैं कागज़ पर बिखरा बिखरा

कच्ची उम्र का प्यार मेरा पहला पहला
संदल वन सा तन मेरा महका महका

आज मेरे चेहरे पर एक उदासी है
आज की शब है चाँद भी कुछ उतरा उतरा

4 comments:

निर्मला कपिला said...

आज मेरे चेहरे पर एक उदासी है
आज की शब है चाँद भी कुछ उतरा उतरा
बहुत खूब क्या सुन्दर अभिव्यक्ति है धुभकामनायें

राजीव तनेजा said...

सुन्दर अभिव्यक्ति

हँसते रहो

रंजना said...

वाह !!! शब्दों की पुनरावृति ने रचना को बहुत सुन्दर बना दिया है...सुन्दर रचना...

Udan Tashtari said...

बेहतरीन!!