Monday, November 9, 2009

हास्य कविता ..सोना

सोना

आजकल हम अपने आप से त्रस्त हैं
सोने की भयंकर बीमारी से ग्रस्त हैं
ना मौका देखते न दस्तूर
सोते हैं भरपूर
सोने के हमारे किस्से अजब निराले हैं
अब तो गीनिश बुक से
अधिकारी भी घर आने वाले हैं
एक बार सोते सोते इतना टाइम पास हो गया
कि लोगों को हमारे मरने का आभास हो गया
वो हमे चारपाई समेत उठाकर शमशान ले आए
गहरी नींद में हम कुछ समझ ही नही पाए
जैसे ही हमे नहलाने के लिए पानी डाला गया
हम नीद से जाग गये
पर लोग हमे भूत समझ कर भाग गये
बोर्ड की परीक्षा में प्रशन पत्र मिलते ही सो गये
आँख तो तब खुली जब परीक्षा में फ़ैल हो गये
एक बार मंच पे कविता पढ़ते पढ़ते ही सो गये थे
कुछ पता ही नही चला कब हूट हो गये थे
सोते सोते ही खाते सोते सोते ही नहाते हैं
कई बार तो उठने से पहले ही सो जाते हैं
शादी वाले दिन पहले फेरे के बाद ही सो गये
नींद तब खुली जब २-२ बच्चे हो गये
हमारे पिताजी भी सोने में बडे तेज़ थे
एक बार जब रामलीला में उन्हें
कुम्भकरण के रोल में सुलाया गया
फ़िर तो अगली साल की राम लीला में ही उठाया गया
दादाजी सोते सोते ही पैदा हुए सोते सोते ही मरे थे
उनकी इस प्रतिभा से सब लोग डरे थे॥
हम तो वंश वाद निभा रहे हैं
परिवार की सोती परम्परा को और सुला रहे है॥
अब तो बस एक ही तमन्ना है
आयोजक हमे लिफाफे के बदले दे दे एक चारपाई
साथ में रजाई
हम कविता समाप्त होते ही मंच पे सो जायेगें
आप को अगली बार नही बुलाना पडेगा
यहीं से उठ कर कविता सुनायेंगे

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