हास्य मेरे लिए पीड़ा की अभिव्यक्ति है...मैं जब कभी बहुत उदास होता हूँ तब मेरे अंतर मन में हास्य में के भूरुण पनप रहे होते हैं...और जब जब मेरा हास्य अपनी पराकास्ठा पर होता है तब मैं भावनाओं के असीम सागर में गोते लगा रहा होता हूँ ....अपने बारे में बस यही कह सकता हूँ...."कहीं रो लिया कहीं गा लिया कहीं बेवजह यूँही हँस दिया,
ये मिजाज़ कितना अजीब है मैं जुदा हूँ अपने ही आपसे "
Wednesday, July 15, 2009
जिसका जैसा मन होता है वैसा ही दरपन होता है छोटे से दिल में भी यारो बहुत बडा आँगन होता है सुख दुःख में जो साथ निभाए सच्चा वो बंधन होता है जब भी वो मिलता है हमसे पतझर भी सावन होता है
1 comment:
बढिया....
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