Friday, August 14, 2009

जम कि बरसूँ मैं अपने जिस्म को बादल कर दूँ
आज खु़द को मैं तेरे प्यार में पागल कर दूँ
दूर ही दूर रहे तुझ से बलाएँ सारी
मैं ख़ुद को आज तेरी आँख का काजल कर दूँ
तू भटकता है कहाँ खुशबुओं कि चाहत में
आ मेरे पास तुझे छु के मैं संदल कर दूँ..

2 comments:

vandana gupta said...

waah......gazab ka likha hai.

रंजना said...

Waah !!! Bahut sundar !!