हास्य मेरे लिए पीड़ा की अभिव्यक्ति है...मैं जब कभी बहुत उदास होता हूँ तब मेरे अंतर मन में हास्य में के भूरुण पनप रहे होते हैं...और जब जब मेरा हास्य अपनी पराकास्ठा पर होता है तब मैं भावनाओं के असीम सागर में गोते लगा रहा होता हूँ ....अपने बारे में बस यही कह सकता हूँ...."कहीं रो लिया कहीं गा लिया कहीं बेवजह यूँही हँस दिया,
ये मिजाज़ कितना अजीब है मैं जुदा हूँ अपने ही आपसे "
Friday, August 14, 2009
जम कि बरसूँ मैं अपने जिस्म को बादल कर दूँ आज खु़द को मैं तेरे प्यार में पागल कर दूँ दूर ही दूर रहे तुझ से बलाएँ सारी मैं ख़ुद को आज तेरी आँख का काजल कर दूँ तू भटकता है कहाँ खुशबुओं कि चाहत में आ मेरे पास तुझे छु के मैं संदल कर दूँ..
2 comments:
waah......gazab ka likha hai.
Waah !!! Bahut sundar !!
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