Wednesday, July 15, 2009

जम कि बरसूँ मैं अपने जिस्म को बादल कर दूँ
आज खु़द को मैं तेरे प्यार में पागल कर दूँ
दूर ही दूर रहे तुझ से बलाएँ सारी
मैं ख़ुद को आज तेरी आँख का काजल कर दूँ
तू भटकता है कहाँ खुशबुओं कि चाहत में
आ मेरे पास तुझे छु के मैं संदल कर दूँ..

6 comments:

श्यामल सुमन said...

पढ़ना ही मुश्किल हुआ शम्भू करें उपाय।
हरे रंग को छोड़कर दूजो रंग चढ़ाय।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

suman ji se sahamat

राजीव तनेजा said...

वाह!...मज़ा आ गया

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

not readable.narayan narayan

Meraj Ahmad said...

बधाई!
संभावनायें असीम हैं।
धन्यवाद!

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।